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कविता

पलकों के ऊपर

प्रेमशंकर शुक्ल


कितनी नींदों के साथ
लिपटे हैं रतजगे भी
पलकों के ऊपर

वह सपना
जो रह गया था
आँखों में उतरते-उतरते
पलकों के ऊपर
निशान हैं उसके भी
उल्टे पाँव लौटने के
 


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